कुछ यों ही
देर बहुत हुई, इस सोच में सुबह से शाम हुई
रुसवाई के ये किस्से हमारे, जुबां-ए आम हुई
जिंदगी जीते गए, हसरतें यूँ क़त्ल-ए-आम हुई
चर्चे चले यों दिनों-दिन, दास्तां ही तमाम हुई
जुल्फों का बहता पानी सब साथ ले गया
यादें-वादें, नगमे ताल, सारे साज़ ले गया
ग़ज़लें, कजरी, ठुमरी, टप्पे, राग ले गया
लब यूँ ही कांपते रहे, वो अलफ़ाज़ ले गया
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