बेखबर
गीत एक अरसे से गा रहा हूँ
नहीं जानता यह अरसा क्या है
सदियों से जिला रही उम्मीद मुझे
नहीं जानता वक्त का राज क्या है
बीती बातें खुद भुलाना चाहता हूँ,
बस बातों में ढल के रह जाता हूँ
सरगम भी अब तो याद नहीं
नगमे सब मैं पुराने ही गा रहा हूँ
टूट चुके हैं कई साजों के तार
इनमे नहीं जानता राज़ क्या है
गुनगुना रहा बिसरी धुन कोई
नहीं जानता बेसुरा राग क्या है.
अब सुनता कोई नहीं गीत मेरे
नहीं जानता अलफ़ाज़ क्या हैं
बेसिर-पैर हैं सारे अरमां मेरे
नहीं जानता सुर-ताल क्या हैं
१९८१
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