बेचैन मुहोब्बत
- Naveen Trigunayat
- Aug 22, 2020
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बेचैन मुहोब्बत
दुराव के अहसास से परेशां तन और मन
कुछ हो ना जाए, घबराहट से बंध गया हूँ मैं
सूखे से पत्तों मैं चलती हवाएँ सनन सनन
क्या संभालेगी तकदीर, तकदीर से दर गया मैं.
मुश्तकिल रो-रो के पुकारता तुम्हे ये दिल
क्या इल्म है तुम्हे बेचैन, बेक़रार है कोई
दवा नहीं इस मर्ज़ की, यह जानता है दिल
मर-मरके जी रहा, इतना भी गैर नहीं कोई
किस सोच मैं डूबा,अनजाने कहाँ जाता ख्याल
बोझिल पाकों से टपकता डबडब आँखों का नीर
दिन बीता, रात हुई कहाँ, वक्त का है बवाल
बेसुरी सी आवाज़ मैं गा रहा रहमत कोई पीर
बाद जानेके भला लौट कर आता है कोई
दिल मैं उलझन, बेकरारी, का उमड़ता दौर
मायूस गमज़दा, बुझा-बुझा सा कुछ अभी
दिल को भी पता नहीं क्या ढूँढता हर ठौर
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