मौसम
ढल गए दिन इकत्तीस , अगस्त का महीना था
हंस कर या रो कर वर्षा कि झड़ी का मौका था
वर्षा के आँचल सा भीगा, अच्छा एक महीना था
कुछ पल जीवन के लाया, दरिया में नौका था
अबकी बार आएगा सिर्फ तीस दिनों का चक्कर
यूँ दिन बीतेंगे जल्दी, रात कटेगी आहें भर कर
रातें क्यों होंगी लम्बी, इसी हैरत में हूँ अक्सर
घबरा मत भैय्या, सारा बस चौबीसी का बवंडर
दिन पहले होते थे गर्म, चहूँ ओर चलती लू
रातें जाग-जाग पड़ा मैं सोचता हूँ, ऐसा क्यों
वैसे अब आराम बहुत, गर्मी का लगा कर्फ्यू
अब आयेंगे चिकिनगुनिया, वाइरल ओर फ्लू
झींगुर कि आवाज़ बहुत दिलको बहलाएगी
कीट-पतंगों के दल सब लाइटों पर लहराएंगे
उफनते पानी के दौर, गाँव बहा ले जायेंगे
मौसम का ये आतंक जियरा को दह्लायेंगे
२००७
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