शहीद
याद में तुम्हारी आज हजारों फूल खिल गए
जिस राह तुम चले वहां हज़ारों दीप जल गए
इस देश ने क्या पुकारा? हज़ारों कदम उठ गए
तुम अब जा चुके, हम गुलाम आज़ाद हो गए
अपने खून से तुम सींच गए जिस वीराने को
आबाद कर रहें हम आज उसी गुलसितां को
सौगात में हमें दे गए तुम जिस आज़ादी को,
वसीअत संभाल आते हैं आज उसी सलामी को
दुश्मन की जब चीत्कार उठी थी हिमालय पर
कितनों को शांत किया फिर शांत हुए वहीँ पर
क़दमों के तुम्हारे आज बाकी हैं निशां यहीं पर
वीराना भी खामोश है, हैरान, उस सरज़मी पर
१९७४
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