काश
- Naveen Trigunayat
- Aug 22, 2020
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काश
जितना हो सका साथ निभाया तूने
गुलों को हंसना, प्यार सिखाया तूने
पंख तितली के रंग से सजाया तूने
गुंजन भोंरे कि मधुर बनायी तूने
बरखा की गिरती बूंदों की सरगम
धरती ही से उठती सौंधी सुगंध
गुमसुम सी तुम, खामोश से हम
नया सवेरा झुकी पलकों में बंद
कुछ वादे-कसमें खायीं थी हमने
एक दूजे के आगोश सजाये हमने
वक्त के आगे बिखेरे सब अरमां
न मिली ज़मीं, न मिला आसमां
नीरस जीवन लिए फिरते हरदम
अरमां है की किसी मोड़ पर मिलो
होता तो ऐसा नहीं, ओ मेरे हमदम
सूनेपन की थाह पर कहीं मिलो
२००६
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