top of page

यादें

यादें


हमें तो तुम्हारी याद बहुत आ रही है

सुबह आ रही थी, अब भी आ रही है

सारी शाम आ रही, यूँ भी आ रही है

क्या कहूँ तुमसे, क्यों इतनी आ रही है


यहाँ भी आ रही थी, वहां भी आ रही थी

दिल में आ रही थी, धड़कन में आ रही थी

ऐसे भी वो आ रही थी, वैसे भी आ रही थी

ये क्यूँ आ रही थी, शायद यूँ ही आ रही थी.


रोका बहुत हमने उसे, फिर भी आ रही थी

टोका उसे बहुत हमने फिरभी आ रही थी

घूर-घूर के देखा उसे, फिर भी आ रही थी.

तन्हा तो वह नहीं थी, समूह में आ रही थी


तुमने हमसे पूछा, आखिर क्यों आ रही थी

पर पता हमें भी नहीं कि वो क्यों आ रही थी

तुम ही बता दो भला इतनी क्यूँ आ रही थी.

अब तुम जो आ गई, छोडो क्यों आ रही थी.




१९८२




 
 
 

Recent Posts

See All
SATYAVAN-SAVITRI KATHA

At one time King of Madradesh (now known as Syalkot, Pakistan) had prayed to Savitri Devi with the offerings of Musturd seeds for a good...

 
 
 

Comments


bottom of page