top of page

अवगति

अवगति


खड़े वृक्ष से झूम रहे हम ले समीर स्पंदन

राही राह भटके, अनेक जीवन के भाव वंदन


कब, कहाँ, किधर की सुध न ली कभी और

मुड चले उस ओर, जहाँ लेगाया हवा का दौर.


अपनी ही गति से गतिमान उलझा सा वर्तमान

जीवन की धूल में लिपटा, सहमा-सहमा सा इंसा


प्रकृति के अंतरमय से विकसित हर एक पल

मन में ढूँढ रहे समस्या क्या है, क्या है इसका हल


थम तो सब कुछ जाता है, शोषित और विकल

पृथ्वी के पारशव से ही उभरा सरोवर ये अविरल





१९७३


 
 
 

Recent Posts

See All
SATYAVAN-SAVITRI KATHA

At one time King of Madradesh (now known as Syalkot, Pakistan) had prayed to Savitri Devi with the offerings of Musturd seeds for a good...

 
 
 

Comments


bottom of page