top of page

INTAZAAR

इंतज़ार


ये अँधेरा भी रात का अब शेष हुआ चाहता है

बाकी कारवाँ तारों का अब रवां हुआ चाहता है

समेट सभी किरणें चाँद मध्यम हुआ चाहता है

लाली छा गयी क्षितिज पे सुबह हुआ चाहता है


हम बैठे रहे रात सारी, दर्द दिल में संजोय हुए

वो तो न आये, अभी तक क्या वे भी पराये हुए

राह तकते आँखे सूखी, सूख गए आंसू आये हुए

सुबक सुबक रह गए अरमान दिल मैं आये हुए



१९७३


 
 
 

Recent Posts

See All
SATYAVAN-SAVITRI KATHA

At one time King of Madradesh (now known as Syalkot, Pakistan) had prayed to Savitri Devi with the offerings of Musturd seeds for a good...

 
 
 

Comments


bottom of page