top of page

MAIN KHUD

मैं खुद


बेजान कुछ अलफ़ाज़यूँ कानों से टकराए

अपने ही बोल पहचान हम बहुत घबराए


वैसे भी दिन बहुत बीते अपना ख़याल आये

बाद एक अरसे के, अपने ही पास हम आये

सोचा, अहसास हुमें कुछ अपना भी ही जाए

आज चेहरा अपना ही कहीं दूर नज़र आये


कह रहा था दिल हमसे दास्ताँ हमारी ही

ये रंजिशें भी, और ये खुशियाँ हमारी थीं

सारे अच्छे औ’ सारे बुरे करम जो थे हमारे

मन से मेरे गुजरने लगे बेपर्दा हो कर सारे


कुछ यादों से आँखों के अश्रु भी छलके

कुछ यादों से विरह-दुःख के आँचल ढलके

कुछ यादों से हुए हलके ये हमारे अरमान

कभी भीगी पलकें कभी खिली मुस्कान


यादें कुछ थे ऐसी कि बेबस हंसीं सी आयी

कुछ के चलते दिलमे एक बेकसी घिर आयी

शर्मनाक कुछ थे ऐसे कि गर्दन झुक आयी

क्या कहें भैय्या, जिंदगी, ऐसी ही कुछ पायी


१९७३


Recent Posts

See All

SATYAVAN-SAVITRI KATHA

At one time King of Madradesh (now known as Syalkot, Pakistan) had prayed to Savitri Devi with the offerings of Musturd seeds for a good...

MY POINT OF VIEW

The room now was very quiet. Golden light fell on the table top next to my chair. The other chair on the opposite side of the table was...

コメント


bottom of page