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PHIRSE KAHO NA

फिर से कहो


क्या कुछ कह रहे थे तुम मैं समझ नहीं पाया

शायद हवा का कोई झोंका था सुन नहीं पाया


हाव-भाव से लगा दास्ताँ अपनी सुना रहे थे तुम

बातों से लग रहा था आप-बीती गिना रहे थे तुम

साथ जगत के क्या गुजरी, वही बता रहे थे तुम

मेरा था कुछ ख़याल, या जी बहला रहे थे तुम


सुने जो स्वर तुम्हारे, अंतर्मन को भा रहे थे तुम

कहने का अंदाज़ तुम्हारा, मन को भा रहे थे तुम

मन-से-मन के तार बना या मुझे रुला रहे थे तुम

सवाल मेरे वही थे, कुछ और ही बता रहे थे तुम


कोलाहल बहुत था, शोर में दिल की बता रहे थे तुम

मसला शायद कुछ भी न था, बातें बना रहे थे तुम

मौसम तो सावन का था, सर्द हवाएँ चला रहे थे तुम

मन की मेरे कुछ न कही, बस अपनी चला रहे थे तुम



२०००


 
 
 

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