SAHARE
- NAVEEN C TRIGUNAYAT
- Feb 8, 2021
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सहारे
इस पार उतर, भैय्या, उस पार उतर
मांझी मेरी किस्मत के एक बार उतर
है मझधार यहाँ तो, गहन भंवर वहां
है अपनी उलझन का कोई अंत कहाँ
काली घनघोर घटा गरजती है यहाँ
सूखा तन, बस बूंदों का है नाम कहाँ
भर चली तलैय्या पानी सारी नैय्या के
बढ़ चले अँधेरे काली सियाह रतिया के
धुंध भी घिर के आयी, लुढक-पुढक के
चाँद भी, तारे भी हो गए पार नज़र के
अब डोल रही डग-मग जीवन नांव हमारी
ये लहरें खोज रहीं, नादान पतवार हमारी
गिर कर फिर उठें हैं सारे अरमान हमारे
रोको सारे तूफां, साहिल अब पास हमारे
१९७४
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