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SALI SAHIBA

साली साहिबा


आज फिर जेब हमारी खाली है

जो आएँगी

कल

वो हमारी साली हैं

खातिर करेंगे खूब

उनकी

खुर्राट बीवी

दीदी है उनकी असली

यही सोच कर

लिख रहा हूँ एक कविता

फिल्मों में

जोर जोर से

गाएंगी बबिता

छप भी सकती है,

है अच्छी पत्रिका ‘सरिता’

बिक भी सकती है

बन कर दुःख हरिता

यह सब लिखने का

अर्थ नहीं कुछ और

पैसे कमाने का

चला रहा हूँ दौर

साली गर न हुई,

खुश

छिन् जायेंगे

अपने भी र्रोखे कौर


 
 
 

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