दर्द
दर्द यों रहेगा मेरी शामों को इंतज़ार तेरी बाहों का. तेर चेहरे के हर रंग, आधे-अधूरे अरमानों का क्या हसरतें, क्या सपने, कुछभी पास न रहा समां...
दर्द यों रहेगा मेरी शामों को इंतज़ार तेरी बाहों का. तेर चेहरे के हर रंग, आधे-अधूरे अरमानों का क्या हसरतें, क्या सपने, कुछभी पास न रहा समां...
खिलवाड़ कहा भोंरे ने कलि से, “जरा मुस्काओ” बोली कलि, “तुम और ज़रा पास आओ“ फिरतो लज्जा से वह हुई और भी लाल भोंरा खुश था, उसका भी हुआ बुरा...
कुछ यों ही देर बहुत हुई, इस सोच में सुबह से शाम हुई रुसवाई के ये किस्से हमारे, जुबां-ए आम हुई जिंदगी जीते गए, हसरतें यूँ क़त्ल-ए-आम हुई...
काश जितना हो सका साथ निभाया तूने गुलों को हंसना, प्यार सिखाया तूने पंख तितली के रंग से सजाया तूने गुंजन भोंरे कि मधुर बनायी तूने बरखा की...
आस किस तरह सुबह होती है शाम होती है जिंदगी चलती नहीं अकेले कुर्बान होती है कैसे माने,कि तुम आओगे हंस कर दिखाओगे एक आस लगी रहती है अपने...
शहीद याद में तुम्हारी आज हजारों फूल खिल गए जिस राह तुम चले वहां हज़ारों दीप जल गए इस देश ने क्या पुकारा? हज़ारों कदम उठ गए तुम अब जा चुके,...
वायु सैनिक फिर भी जीना तो है ही किसी भी इन्सा कि तरह हर उठती नज़र में हमें भारत माता की डगर में पहने कभी हार मौत के फकत फ़र्ज़ निभाने केलिए...
यादें हमें तो तुम्हारी याद बहुत आ रही है सुबह आ रही थी, अब भी आ रही है सारी शाम आ रही, यूँ भी आ रही है क्या कहूँ तुमसे, क्यों इतनी आ...
मौसम ढल गए दिन इकत्तीस , अगस्त का महीना था हंस कर या रो कर वर्षा कि झड़ी का मौका था वर्षा के आँचल सा भीगा, अच्छा एक महीना था कुछ पल जीवन...
मेरी रूठी प्रेम गाथा २३ सितम्बर १९७२ मेरी शादी के विषय को ले कर मेरे सम्बन्ध अपने माँ-बाप से पहले ही विच्छेद हो गए थे . मुझे अब यह काम भी...
बेखबर गीत एक अरसे से गा रहा हूँ नहीं जानता यह अरसा क्या है सदियों से जिला रही उम्मीद मुझे नहीं जानता वक्त का राज क्या है बीती बातें खुद...
तुम भी ! बस...... बात कोई मेरी कभी तुम सुनते ही नहीं बड़ी झल्लाहट से भरी बोली मेरी पत्नी मैं खैरख्वाह हूँ तुम्हारी, कोई गैर तो नहीं प्यार...
झक-झकी राही पथिक था, भटक गया, राह सूनी थी न पेड़, न कोई टहनी थी रात भी घनेरी चाँद-तारे थे मध्यम सूझी उसे न मंजिल कोई कुछ हार के, झक मार...
खबर-नामा दीन दुनिया की ख़बरें सारी ले आया है अखबार कल की हर घटना मैं हुआ शामिल कल का वार ये भी खरीदो, या कुछ बेचो, ऐसा ही है इश्तहार खबर...
अवगति खड़े वृक्ष से झूम रहे हम ले समीर स्पंदन राही राह भटके, अनेक जीवन के भाव वंदन कब, कहाँ, किधर की सुध न ली कभी और मुड चले उस ओर, जहाँ...
CLOSE CALLS …….and a little more In my earlier blog titled “Life in Ruins’ you got a glimpse of my personal life as I was growing up....
When I was alive I was known as Sumita. I was born in 1947 and my parents were healthy to say the least. Only one point remained of which...
Naveen C Trigunayat I and the rest of India were pleasantly introduced to the first taste of Hindutva when Door-Darshan first aired a TV...
by Naveen Chandra Trigunayat Sri Hanuman Chalisa-An Introduction Sri Hanuman Chalisa was written by an ardent fan of Sri Ram some 500...